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राजनैतिक षड़यंत्र की चपेट में हिंदी: सच या लोकवाद

  • Wednesday, September 21, 2022
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  • By Jimmc

सनातनी भारतीय राष्ट्र में  १४ सितम्बर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।  यह इस राष्ट्र का दुर्भाग्य है कि इस राष्ट्र में कभी हिंदी भाषा प्रयोग में लिखी और बोली जाती थी । यहां एक ऐसा बुद्धजीवी वर्ग है जो हिंदी बोलना अपना अपमान समझता है, और हिंदी को निकृष्ट भाषा की श्रेणी में समझते है और इसका असर आज के प्रशासनिक कार्यालयों में दिखाई देता है ।  आज के समय दैनिक बोलचाल में हिंदी के नाम  पर उर्दू,  अरबी और अंग्रेजी शब्दों का चलन सामान्य बात है । श्री देवेंद्र सचान द्वारा लिखा यह लेख हिंदी पर हुई राजनीती को उजागर करता है|

स्वाधीनता आंदोलन के समय हिंदी भाषा में प्रकाशित पत्र, पत्रिकाओं ने देश को अंग्रेजो से मुक्ति दिलाने में एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा भारतीओं को एक सूत्र में पिरोये  रखा ।

स्वतंत्रता के पश्चात भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा व राज्य भाषा का पदक्रम  दिया गया लेकिन भाषा के प्रचार व प्रसार के लिए शासन, प्रशासन  द्वारा यथार्थपूर्ण  सराहनीय कार्य नहीं किये गए ।  लेकिन अंग्रेजी भाषा प्रचार, प्रसार और प्रयोग नित्य निरंतर चलता रहा । एक अच्छी बात है आज हिंदी की वैश्विक स्थिति काफी बहेतर है विश्व के कुछ महतवपूर्ण देशों के विश्व विद्यालयों में हिंदी अध्ययन, अध्यापन हो रहा है । परन्तु दुर्भाग्य यह है कि विश्व में अपनी स्थिति के प्रतिकूल हिंदी भाषा अपने ही देश में उपेक्षित जीवन जी रही है ।

यहां एक बात बताना चाहूंगा कि हिंदी भाषा का १९२० से अंग्रेजों की क्रिश्चियन मिशिनरियों ने इस हिंदी भाषा को भारत के दक्षिण प्रांतो में विरोध कराना शुरू कर दिया था, जिसका प्रभाव तमिलनाडु, केरला व कर्नाटक जैसे प्रांतों में दिखाई पड़ा जो आज भी हो रहा है । यह एक अंग्रेजों की भारत में भाषाई एकता को तोड़ने की एक योजना थी जिसमे लार्ड मैकाले के साथ भरतीय वामपंथी बुद्धजीवी विचारकों ने मुख्य भूमिका निभाई ।  जहां सुप्रभात न बोलकर  गुड मॉर्निग से सूर्योदय और शुभ संध्या  न बोलकर गुड इवनिंग से सूर्यास्त होता है । राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के उस काल में वामपंथी बुद्ध जीवियों ने दास भारतियों पर अंग्रेजो का भय बना रखा था, कारण जनता सीधे अंग्रेजो से वार्ता न करे ।  अंग्रेजी बोलने वालों को आडम्बरपूर्ण बुद्धिमान एवं हिंदी बोलने वलों को अनपढ़ए, असभ्य जताने की परम्परा इन वामपंथी बुद्ध जीवियों  की रही  है ।

भारत में राजनेताओं द्वारा हिंदी को लेकर बहुत आडंबर और राजनीती की जा रही है । हर वर्ष हिंदी दिवस आता है हिंदी को लेकर  बड़े बड़े आडंबर युक्त वक्तव्य देकर हिंदी पखवावड़े का आयोजन कर इतिश्री कर ली जाती है । भारत में हिंदी अंग्रेजी नीति का हिंस्र हो चुकी है । यही कारण है कि हिंदी आज तक राष्ट्र में व्यावहारिक द्रष्टि से न तो राजभाषा बन पाई और ने ही राष्ट्र भाषा ।

किसी भी भाषा के स्वरूप को अस्थिर बनाने के लिए उस भाषा पर दूसरी भाषा के शब्द बलात रखे जाएँ, प्रयोग में बोले जाएँ तो ऐसी भाषा का स्वरूप अस्थिर एवं अल्पजीवी होती है और यही हिंदी भाषा के साथ किया जारहा है । भारत में हिंदी का नाम मुगल काल में हिंदी पड़ा,  इससे पहले यह देवनागरी के रूप जानी जाती थी । एक अप्रौढ, भाषा के इस लघु से जीवन में बनने और बिगड़ने की प्रक्रिया निरन्तरम् रही है ।

हिन्दी के लिए यह संक्रमण का काल है । यह ऐसा काल है जिसमें वैश्वीकरण की शक्तियां किसी भी ऐसे सुविचार का विरोध कर उसे नष्ट करने या नगण्य बनाने पर तैयार हैं जो मनुष्य को  केवल उपभोक्ता बनाने का विरोध करता है । सर्वविदित है कि भाषा बौद्धिक विक्सित मानवी  विचारों की वाहक होती है और किसी भाषा का गद्य जितना संशोधित और स्वच्छ होगा वह भाषा और उसे बोलने वाले अनुचरवर्ग उतनी ही प्रभावशाली होती है, लेकिन अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है जो न ही संशोधित और न ही स्वच्छ है फिर भी वर्तमान में हिंदी को एक संक्रमण की तरह उस पर असर बढ़ा रही  है ।  हिन्दी भाषा  पर कालांतर में अनेक प्रकार के आक्रमण हुए हैं  जैसे राष्ट्रीय इतिहास की गति में अंग्रेजी शासन में किये गए बदलाव, अंग्रेजी वामपंथियों बुद्धजीवियों द्वारा भाषा को

बिगाड़ना, और अंत में अंग्रेजी वामपंथियों बुद्धजीवियों द्वारा मान्यता के नाम पर बोलियों-उपभाषाओं का विखण्डनवादी अभिवृत्तिः ।

इसी तरह हिंदी में दूसरी भाषाओँ के शब्दों के घालमेल का सवाल है । आज की हिंदी में उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्दों का मिश्रण अत्यंत सहज और स्वीकार्य लगती है लेकिन कई हिंदी भाषी शुद्धतावादी इसे उचित नहीं समझते । हिंदी की प्रकृति तथा आवश्यकता के अनुसार लचीला रूख अपनाया जाना सही होगा। उदाहरण ट्रेन के लिए रेलयानम्‌' शब्द का उपयोग करने में कोई बुराई नहीं है ।  लेकिन यदि अंग्रेजी या उर्दू शब्दों को जब हिंदी मिश्रित किये जाते हैं तब शब्द के भवार्थ व गुणधर्म परिवर्तय होता है।

यदि हिंदी में चाय के प्याले या प्याली शब्द के लिए अंग्रेजी प्रेमी को यह हिंदी शब्द पूर्णतया भद्दा लगेगा क्योंकि हिंदी के वास्तविक शब्दों को दैनिक बोलचाल उपोग से हटाना और अंग्रेजी में दैनिक बोलचाल में 'कप्स' शब्द का उपयोग दोष-रहित प्रमाणित करना ।

इसका सहज तर्क हमारी भाषा के आधारभूत संस्कारों और परिवेशजन्य विशिष्टताओं से है । यदि हम अंग्रेजी के कंप्यूटर शब्द की जगह हिंदी भाषा का शब्द संगणक उपयोग करें तो यह अमान्य होगा क्योंकि ये पश्चिम से आए अंग्रेजी शब्दावली के शब्द हैं । यहां पर लेखक किसी अन्य भाषाओँ का विरोध नहीं करता अपितु हिंदी भाषा की पवित्रता और संस्कारिता को वर्णसंकरिता से सुरक्षित करना है।  किसी भी भाषा में उसकी शुद्धता ही उसकी विशिष्टता होती है ।

किसी भी देश की  पहचान उस देश की भाषा से होती है लेकिन भारत जैसे राष्ट्र की भाषा हिंदी को ही नष्ट करने का एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है जो १४ सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाई जा रही है । यह  भाषा अपने इस दुर्भाग्य पर अश्रुरूदन कर रहा है, जो  नहीं होना चाहिए इस दिन हम सभी को शोक मनाना चाहिए ।

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